Wednesday, December 26, 2012

एक बरस बीत चला

मेरे पिताजी के बरसी के चंद दिन पहले लिखा हुआ गीत।


एक बरस बीत चला

एक बरस बीत चला

मीत का प्रीत जो छूटा

प्रीत का आस जो रूठा

अश्रु घट अंतर का भी अब रीत चला

एक बरस बीत चला

एक बरस बीत चला



आँख ये अश्रु में भीगे

पुतले बिना ये धागे

यादों में ह्रदय मेरा अब पसीज चला

एक बरस बीत चला

एक बरस बीत चला



कट रहे है रात दिन

न चैन......नींद बिन

हर घड़ी उसको ही दिल मेरा ढूँढ चला

एक बरस बीत चला

एक बरस बीत चला



अश्रु में भी वो बसा

यादों में भी है वो सजा

यूँ तो हर दम ही क्या वो मेरे साथ चला

एक बरस बीत चला

एक बरस बीत चला





रीत चला: खाली हो चला

पसीज: पिघल



--------------------------------------------------------------------------------------

Tuesday, November 13, 2012

Standing at the Entrance of my Home

Staring into the early morning sky

There's a Star, Bright and Big

Wind is Silent and doesn't move a Twig

Not even the Birds have woken

World's Sleep, felt so unshaken

Cold morning air, Numbs Ears and Nose

Tears from the Eyes, flows and flows

Moments pass by in Stealthy Silence

The Star then shows, it's true Essence

A Face then appears, Deep in the Light

The smiling eyes emerge from depth Infinite

Eyes so Silent and Smile so Pure

I know him, I know him, I know him for sure!!!!!





Ha...the Mountain, Broad and Bold

Fire Brews in the Belly, but you are so Cold

you stand here, from time so old

I wonder how many lives you've mould



you look so mean, but covered in green

I can see the fire, rolled in rocky screen

rooted so deep, towards sky you creep

yet, for some eyes, you are only a heap



Till the fire is boiling, you'll be called 'Alive'

You'll have world's respect, it's not a lie

but the fire is growing and yearning to fly

The day is coming.......oh my my



The Smoke on the day, will cover all sky

The Heat will make the heavens cry

The Fire will flow to the ocean's womb

The rocks from then, will be called..... The Tomb!!!

Sunday, November 11, 2012

Do you see the dark night sky?

into it, some day I'll fly

Radiant is it's Womb, There i'll reach for light

Into it's infinity, towards the true Infinite



Ah.....Now, I enter the old Abode

To come here, so long I've Rode

I see my host, and i call her Mother

I know she'll bear me like no other



she conceals me deep in her

she conceives through light in her

I, the spirit, shall start

Orange Winged Fire shall flap and flutter

The White Infinite, now, shall utter

Liberation at last,tonight it'll Start

On the stroke of dawn, I, the spirit, shall start



Spirit, thy bonding, tonight is last

Into the Infinite, tomorrow you'll be lost

so many Shackles, today, are cut

Opening are the doors, which were once shut



The house I leave, Nomad, now I'll be

Glad and Nude, Alone I'll be



Sunday, October 14, 2012

ठगने वाले अक्सर

ठगने वाले अक्सर, मेरे अपनों में क्यों निकले

ग़मगुस्सार सब आज हसने वालों में क्यों निकले


दुनिया बनी है ऐसी, कि यहाँ गुस्ताख़ नहीं सोने वाले

गुल-ए-शब् की खुशबू, अनजान ही क्यों निकले


दबा देंगे हमें , ये दुनिया में उड़ने को बिकने वाले

ये हीरा अक्सर, खानों की गहराई से ही क्यों निकले


बड़ी मशक्क़त हुई , पर हम न थे बदलने वाले

लो तेरी बेपाक दुनिया से हम फिर भी नादान ही निकले

लगता था कि हमने बहुत देखी है दुनिया

जब कफ़न का पर्दा पहना तो कुछ और ही देखा


---------------------------------------------------------------------------------


तेरे साथ, ता उम्र रहने की आस भी न थी

ऐसे छीन लेगा तुझे, खुदा से ये उम्मीद भी न थी


-------------------------------------------------------------------------------------------


किये थे बहुत गुनाह जब हमने

तो हमारा कफ़न बेदाग़ क्यों है?


----------------------------------------------------------------------------------------

परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी

परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी


इतना रोये कि नींद भी बड़ी गहरी आई


लिपटना चाहा तो बिस्तर में तुम न थे

जो ढूँढा तो समझा, अब हम, हम न थे


अब ये समा है, तुम ख्वाब में भी आते नहीं

अब लगता है की हम, जिंदा है ही नहीं


तुम आओगे, इसकी हमें उम्मीद भी नहीं

भुलाना तुमको, हमारे बस में भी तो नहीं


परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी

इतना रोये कि नींद भी बड़ी गहरी आई

एक और रात गुज़ार लेने दो मुझे

ए दोस्त,इतनी जल्दी क्यों संभालते हो मुझे


ग़म को थोडा और महसूस कर लेने दो मुझे



ग़म में डूबा हूँ, पर मेरी फ़िक्र तुम न करना

थोड़ी देर और शराब पी लेने दो मुझे


साथ छोड़ा नहीं जिसने, वो तो ये ग़म ही है

थोड़ी देर और इससे गुफ्तगू कर लेने दो मुझे


इसे थोडा और नजदीक से जान लेने दो मुझे

ग़म के साथ एक और रात गुज़ार लेने दो मुझे

मुझे चलना होगा

काफी लम्बा सफ़र है, पर मुझे चलना होगा


राह जो बनी नहीं, वही से गुज़रना होगा


पत्थर भी है, कांटे भी बिछे है राह पर यहाँ

ज़िन्दा हूँ आज, तो फिर कुछ दूर और चलना होगा


चलते है सब वहाँ, खेत किसीने बनाया है जहां

कोई और घना जंगल है जिससे मुझे निकलना होगा



राह की खातिर, मुझे कुछ दूर और चलना होगा

जहां कोई नहीं चला, उस राह पर मुझे चलना होगा

क्या दुनिया बनायीं है तूने रे खुदा

क्या दुनिया बनायीं है तूने रे खुदा


अब सच्चा कोई शायद यहाँ नहीं रहता

आलम ऐसा है यहाँ कि

अब तो दुश्मन भी दुश्मनी का इज़हार नहीं करता

लो और एक शब् कटती है, उनके इंतज़ार में

लो और एक शब् कटती है, उनके इंतज़ार में


विसाल की आस में, या फिर ऐतबार में


कोने में शम्मा वो जलती ही रही,नूर के इंतज़ार में

दिल भी तो अपना जलता ही रहा उनके प्यार में



नींद में सिरहाने बैठता है कोई, नहीं वो बेज़ार में

रूह तो हमारी खो चुकी है अब इस गुबार में



आता है अक्सर जो सरोश नूर-ए-ग़ैब में

सुलाता है वो फिर रूह को, किसी फिरदौस में



विसाल: मुलाक़ात

ऐतबार: भरोसा

सिरहाने: सर के पास

गुबार: cloud

सरोश: फ़रिश्ता

नूर-ए-ग़ैब : Mysterious light

फिरदौस: जन्नत

खुदा नहीं मिला तो यहाँ रोता कौन है

खुदा नहीं मिला तो यहाँ रोता कौन है


वैसे उसके इंतज़ार में यहाँ जीता कौन है


कल तक हम भी सोचते थे की वो आएगा कभी

कल आएगा भी तो उसके लिए यहाँ रुकता कौन है


खुदा तो आखिर खुदा है, कोई आशना नहीं

ऐतबार उसपे करके चैन से सोता कौन है


जीते थे हम भी कभी उसके नक्श-ओ-कदम पर

आज खुदा को खो कर यहाँ कुछ खोता कौन है


बहुत सताया है प्यार में उसने हमको

अब उससे उम्मीद मोहोब्बत की करता कौन है



वो दिन भी थे, हम उनसे मांगते थे कुछ

आज खुदा से विसाल की दुआ करता कौन है




आशना: दोस्त


ऐतबार: भरोसा


विसाल: मुलाक़ात

Monday, October 8, 2012

सुनता नहीं कोई

सुनता नहीं कोई, फिर बोलने की बेचैनी क्यों है
पढ़ता नहीं कोई, फिर लिखने की बेक़रारी क्यों है

अंधे है सब, फिर शब् से इन्हें शिकायत क्यों है
इंसा ही नहीं यहाँ, फिर इंसानियत की वक़ालत क्यों है

ग़श में है सब, फिर ग़मगुस्सार का इंतेज़ार क्यों है
ग़ैरत पाले है सब, फिर प्यार का ऐतबार क्यों है

मुखौटा पहने है सब, फिर आईने की ज़रुरत क्यों है
मरते है सब, फिर जीने की चाह, ता क़यामत क्यों है





"ಅವ್ರ ಇನ್ಮ್ಯಕ್ ಇರ್ತಾರ್ ನಮ್ ಮನ್ಯಾಗೆ"

ಸಿದ್ದನ್ ನಾನು ಇಲ್ಗಂಟ್ ನೋಡಿದ್,ಅವ್ನ್ ಅಂಗಡೀಲೇನೇ
ಅವ್ನ್ ಮನೆ ಎಲ್ಲೈತೋ, ಅಲ್ ಯಾರವ್ರೋ ದೇವ್ರ ಆಣೆಗೂ ಕಾಣೆ


ನಂಗ್ ಬೇಕಾದವ್ರು ಇದ್ರು ಒಬ್ರು,ಸಿದ್ದ್ನ್ ಅಂಗಡೀಗ್ ಬರ್ತಿದ್ರು
ನಂದು ಅವರ್ದು ಬಲೇ ದೋಸ್ತಿ, ನಂಗ್ ಗುರುಗಳ್ ಅವ್ರು


ಇದ್ಕಿದ್ದಂಗೆ ಬೆಳಿಗ್ಗ್ನೆ ಎದ್ದು, ಸಿದ್ದನ್ ತಾಕ್ ಹೋಗ್ತೀನಂದ್ರು
ಕುಡಿಯಕ್ ಹೋಗ್ತಾರೇನೋ ಅಂತ ತಿಲ್ಕೊಂಡಿದ್ರು ಎಲ್ರು


ಕಾದು ಕಾದು ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗಡೀಗ್ ಹೋಗಿ ಇಚಾರ್ಸಿದ್ರೆ.....
ಗಲ್ಲ್ದಾಗ್ ಕುಂತಿದ್ ಸಿದ್ದ ಎಳ್ದಾ, "ಅವ್ರ ಇನ್ಮ್ಯಕ್ ಇರ್ತಾರ್ ನಮ್ ಮನ್ಯಾಗೆ"

दूर जाना चाहता हूँ आज

दूर जाना चाहता हूँ आज, कि यहाँ कुछ घुटन सी है
कहते है जन्नत है ये, पर इज्ज़त बगैर कुछ जनाज़े सी है


किसी और से क्यों मांगेंगे हम, कि कुछ खुद्दारी सी है
मांगेंगे सिर्फ खुदा से, कि ये हमारी सरगेरानी सी है


मुसाफ़िर है तो फिर, चलना हमारी मजबूरी सी है
झुक के मांग नहीं सकते, अब क्या ये हमारी कमज़ोरी सी है ?

बोलिए आज क्या सुनाये

हमें सुनने की ज़िद बहुत करतें है आप, बोलिए आज क्या सुनाये
हमारे इश्क की दास्ताँ, ज़बानी या रूहानी सुनाये?

इज़हार-ए-इश्क

इतनी गहरी उतरती है नज़र तेरी

कुछ छुपाने का जी नहीं करता

आज तुम हमारी आँखों में देख लो

इज़हार-ए-इश्क अलफ़ाज़ से नहीं होता

Friday, September 14, 2012

ग़म-ए-शब् कि जैसे, अब लत हो चली है

ग़म-ए-शब् कि जैसे, अब लत हो चली है
तल्क भरी हर शाम, अब नशीली लग चली है

तन्हाई बिन ये बिस्तर, अब सूना लग चला है
आंसू बिन हर शक्स, अब प्यासा लग चला है

सब जीते है कैसे, कि अब ज़िंदगानी मर चली है
सब हँसते है क्यों, कि अब खुशियाँ मर चली है

इंसान को कोई पैगाम दे कि इंसानियत मर चली है
खुदा को कोई बताये, कि उसकी हस्ती मर चली है

Tuesday, September 11, 2012

ये जो अलफ़ाज़ यु बहते है कलम से

ये जो अलफ़ाज़1 यु बहते है कलम से                    1 शब्द

तो हैरत होती है

न जाने कौन भेजता है ये पैगाम

पर इनसे मोहोब्बत होती है



ये जो ग़ज़ले यु बहती है दिल से

तो हैरत होती है

न जाने किसका अशफाक2 है ये                               2 आशीर्वाद

पर इनसे मोहोब्बत होती है




ग़म-ए-शाम यु शराब बिन कटती है

तो हैरत होती है

की जो रूह-ए-कलम से पिलाता है वो

अब उससे मोहोब्बत होती है

Monday, September 10, 2012

बहुत लाई हँसी लब पर




बहुत लाई हँसी लब पर

फिर भी दिल से ग़म निकले

कि वो याद आये बहुत अब, पर

वो मेरे दिल से कब निकले



वफ़ा तो बेइन्तेहा की जब, पर

हम इश्क से बे-आबरू क्यों निकले

सुबह बहुतों के गले मिले जब, पर

रात को फिर तनहा क्यों निकले



खूब घूमे गली-बाज़ार जब, पर

प्यार लिए बगैर क्यों निकले

खूब कमाया जो पैसा जब, पर

कफ़न में जेब सिलाए बगैर क्यों निकले

तो मज़ा आये




हाल-ए-दिल तो सब ही है पूछते आये

हाल-ए-रूह1 भी कोई पूछे, तो मज़ा आये                                   1 आत्मा

ग़म-ए-धूप में है सब चलते आये

किसीको सुकूँ2-ए-छाव दे तो मज़ा आये                                    2 शांति


सुकूत3-ए-ज़िन्दगी है सब जीते आये                                        3 निःश्यब्द

कि कोई एक ग़ज़ल गाये तो मज़ा आये


मौला-ए-समंदर से है सब डरते आये

कि कोई उसमे डूबे तो मज़ा आये


सहरा4-ए-दुनिया में है सब मज़हबी5 आये                             4 रेगिस्तान

कि कोई इंसान भी यहाँ आये तो मज़ा आये                        5 मज़हब से प्यार करने वाले

ಸಾರಾಯಿ ಸಿದ್ದ

ಮುನ್ನುಡಿ:

ಈ ಕೆಳಗಿನ ಸಾಲುಗಳು, ಒಂದು ಸಾರಾಯಿ ಅಂಗಡಿಯ ಸುತ್ತ ಹುಟ್ಟಿದಂತ ಸಾಲುಗಳು. ಆ ಅಂಗಡಿಗೆ 'ಸಿದ್ದ' ಎನ್ನುವವನು ಮಾಲೀಕ. ಮೇಲುನೋಟಕ್ಕೆ, ಈ ಸಾಲುಗಳು, ಆ ಅಂಗಡಿಯಲ್ಲಿ ನಡೆಯುವ ದಿನನಿತ್ಯದ ಸಾಧಾರಣ ಸಂಗತಿಗಳನ್ನು ಹೇಳುತ್ತವೆ.

ಆದರೆ ಈ ಸಾಲುಗಳ ಒಳಗೆ ಹೊಕ್ಕು ನೋಡಿದಾಗ ಅದರಲ್ಲಿ ಸಿಗುವ ಸರಾಯಿಯೆ ಬೇರೆ.

ಇಲ್ಲಿ ಸಿದ್ದನು, ಪರಮಾತ್ಮ. ಸಾರಾಯಿ ಅಂಗಡಿ ಎನ್ನುವುದು ಅವನು ಇರುವ ಸ್ಥಳ. ನಾನು ಆ ಸಾರಾಯಿ ಅಂಗಡಿಗೆ ಹೋಗುವ/ಹೋಗಲು ಬಯಸುವ ಒಬ್ಬ ಕುಡುಕ. ಅವನು ನಮಗೆ ನೀಡುವ ಸಾರಾಯಿ ಎಂದರೆ, ನಮ್ಮ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಅವನು ನಮಗೆ ದಯಪಾಲಿಸುವ ಕಷ್ಟ-ಸುಖಗಳು. ಅವನು ಯಾರಿಗೂ ಒಂದೇ ತರಹದ ಸಾರಾಯಿ ನೀಡುವುದಿಲ್ಲ. ಅವನು ಯಾವುದೇ ಸಾರಾಯಿ ನೀಡಿದರೂ ಅದನ್ನು ಭಕ್ತಿಯಿಂದ ಕುಡಿಯುವುದು ನನ್ನ ಧರ್ಮ. ಆ ಸಾರಾಯಿ ಕುಡಿದ ಮೇಲೆ ನನಗೆ ಬರುವ ಮತ್ತು(ಉನ್ಮತ್ತತೆ) ನನ್ನ ಜೀವನದ ಅನುಭವ. ಆ ಮತ್ತು ನನ್ನದು. ಆ ಮತ್ತು ನನ್ನ ಜೀವನ ಸತ್ಯವನ್ನು ನನಗೆ ಸಾಕ್ಷಾತ್ಕರಿಸುವ ಸತ್ಯವೂ ಹೌದು. ಆ ಸಾಕ್ಷಾತ್ಕಾರವೇ ನನ್ನ ಜೀವನದ ಧ್ಯೇಯ. ಅವನ ಸಾರಾಯಿ ಕುಡಿದು, ಆ ಮತ್ತಿನಲ್ಲಿ ತೂರಾಡುವುದರಲ್ಲೇ ನನ್ನ ಈ ಜನ್ಮದ ಸಾರ್ಥಕತೆ.



ಇಲ್ಲಿ ಇನ್ನೊಂದು ಗಮನಿಸಬೇಕಾದ ವಿಶೇಷವೆಂದರೆ, ಈ ಸಾಲುಗಳಲ್ಲಿ ಬರುವ ಪಾತ್ರಗಳು ಹಲವಾದರೂ, ಇಲ್ಲಿ ಹೆಸರು ಇರುವುದು ಸಿದ್ದನಿಗೆ ಮಾತ್ರ. ನಾನು ಮತ್ತು ಬೇರೆ ಎಲ್ಲರೂ ಕೂಡ ಗ್ರಾಹಕರೇ ಹೊರತು ಅವರಿಗೆ ಅವರದೇ ಆದ ಹೆಸರು ಹಾಗು ಮುಖಗಳಿಲ್ಲ. ಅವರ ಗುರುತು ಅಂದರೆ ಅವರು ಸಿದ್ದನ ಗ್ರಾಹಕರು ಎನ್ನುವುದು ಮಾತ್ರ.




1. ನನ್ ದಾರೀಲ್ ನಾನ್ ಹೊಂಟೀನ್ ನೋಡು ಹೆಂಡ್ತಿ ಮಕ್ಕಳ್ ತಾಕೆ

ಕಾಣದ್ ಹುಳಿ ಹೆಂಡದ್ ವಾಸ್ನೇ, ಮೂಗ್ದಾರ್ಧಂಗ್ ಏಳೀತದ್ಯಾಕೆ?

ಬಲ್ ನನ್ ಮಗ ಸಿದ್ದ ಅವ್ನು, ಏನಾರ ತಂತ್ರ ಹೂಡಿ

ಎಳ್ಕೊಂಡ್ ಬಿಡ್ತಾನ್ ನನ್ನ ಅಲ್ಗೆ, ಸರ್ಯಾದ್ ಸಮಯ ನೋಡಿ



ಭಾವ: ನಾವು ನಮ್ಮದೇ ಆದ ದಾರೀಲಿ ಹೊರಟರೆ, ಸಿದ್ದ, ನಮಗೆ ಮೂಗ್ ದಾರ ಹಾಕಿ ಸರಿಯಾದ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಅವನ ಕಡೆಗೆ ಎಳ್ಕೊಂಡ್ ಬಿಡ್ತಾನೆ.



-----------------------------------------------------


2. ಏನ್ ಬುಡ್ತೌನೋ ನಂಗೊತ್ತಿಲ್ಲ, ಸಿದ್ದ ಬುಂಡೆ ಒಳ್ಕೆ

ಕುಡ್ರೆ ಪರಮಾತ್ಮ ಕಾಣ್ತೌನೆ, ಸಾಟಿ ಇಲ್ಲ ಅದ್ಕೆ

ಕುಡ್ಕ ನಾನು, ದಿನಾ ಹೋಗ್ತೀವ್ನ್, ಸಿದ್ದಪ್ಪನ್ ಅಂಗಡೀ ತಾಕೆ

ಸರಾಯಿ ಅಂಗ್ಡೀಗ್ ಬರಲ್ ಅನ್ದೊರ್ಗ್ ಬುಡ್ರೀ ತಲೀ ಮ್ಯಾಕೆ



-----------------------------------------------------

3. ಕೂಲಿ ಮಾಡಿದ್ ಮೈ ಕೈ ನೋವು, ಸರಾಯಿ ಜೋತೀಗ್ ಮಾಯಾ

ನಾಳಿನ್ ಕೂಲೀಗ್ ಹಾಕ್ತದ್ ಕಾಣೋ ಸಿದ್ದನ್ ಸರಾಯಿ ಪಾಯಾ

ಮುಕಾನ್ ಕೀವಿಚ್ಕೊಂಡ್ ಕುಡ್ದೂರ್ ಎಲ್ಲ, ತೂರಾಡ್ತಾರೆ ಕಾಯಾ

ಸರಾಯಿ ಅಂಗ್ಡೀಗ್ ಬರ್ದೋದ್ ಜನ, ಎಲ್ಲನ್ ಬಿದ್ದು ಸಾಯಾ



ಭಾವ: ನಾವು ಇಲ್ಲಿ ಬಂದಿರೋದು ಸಿದ್ದನ ಕೂಲಿ ಮಾಡಲಿಕ್ಕೆ.

'ನಾಳಿನ್ ಕೂಲಿ' ಅಂದ್ರೆ, ಮುಂದಿನ ಜನ್ಮ. 'ಮುಕಾನ್ ಕೀವಿಚ್ಕೊಂಡ್' ಅಂದ್ರೆ, ಸಿದ್ದನ ಕಾಣುವ ಸಾಧನೆಯ ದಾರೀಲಿ ಕಷ್ಟ ಪಟ್ಟವರು.

-----------------------------------------------------

4. ಕೂಲಿ ಮಾಡ್ದೇ ಸಾರಾಯಿ ಕುಡಿಯಾಕ್ ಏನ್ ಮಜಾ ಐತೇಳು

ತಲ್ ಕೆರ್ಕೊಂಡ್,ಹಲ್ ಗಿಂಜದೆ ಹೋದ್ರೆ, ಸರಾಯಿ ನಾಗ್ ಮತ್ತಿಲ್ಲೇಳು

ಸಿದ್ದನ್ಗೂನೆ ನಮ್ಗ್ ಬೈದೆ ಹೋದ್ರೆ, ನಿದ್ದೆ ಬರತೈತಾ ಕೇಳು

ಜೀವ್ನ ಎಲ್ಲ,ಹಗ್ ಜಗ್ಗಾಟ್ದಂಗೆ ಎಳೆದಾಡ್ ಬೇಕ್,ಸಿದ್ದನ್ ಕೇಳು


ಭಾವ: ಸಿದ್ದನ ಎದುರಿಗೆ ಕೈ ಕಟ್ಕೊಂಡು, ಹಲ್ ಗಿಂಜಿ ಕೊಂಡು, ಬೇಡದೆ ಇದ್ರೆ ನಮಗೆ ಸಮಾಧಾನ ಇಲ್ಲ. ನಮಗೆ ಕಷ್ಟ ಕೊಡದೇ ಇದ್ರೆ ಅವನಿಗೆ ನಿದ್ದೆ ಇಲ್ಲ. ಈ ಹಗ್ಗ ಜಗ್ಗಾಟದ ಆಟವೇ ಜೀವನ. ಅಲ್ಲಿಗೂ ಕೂಲಿ ಮಾಡ್ದೇ(ಸಾಧನೆ ಮಾಡ್ದೇ) ಅವನ ಸಾರಾಯಿ ಕುಡಿಯೋದರಲ್ಲಿ ಸುಖವಿಲ್ಲ.

-----------------------------------------------------

5. ಇಂದ್ರ ಇವ್ನೇ, ಚಂದ್ರ ಇವ್ನೇ, ಸಿದ್ದಪ್ನೇ ಎಲ್ಲಾ ನಂಗೆ

ಬುಂಡೇಲ್ ಹುಳಿ ಸಾರಾಯಿ ಕೊಂಚ, ಎಚ್ಗೆ ಬುಡ್ತೌನ್ ನಂಗೆ

“ನಮ್ಮಿಬರ್ದ್ ಇದು ಗುಟ್ಟು....” ಅಂತ ಅವ್ನೇಳೌನೆ ನಂಗೆ

ಕುಡ್ಕನ್ ಬಾಯಿ ಒಸಿ ಸಡ್ಲ , ಗುಟ್ ನಿಲ್ಲಾ ಕಿಲ್ಲಾ ಒಳ್ಕೆ



ಭಾವ: ಕಷ್ಟದಲ್ಲಿ ಆದರೂ ಸುಖದಲ್ಲಿ ಆದರೂ, ಅವನು ನನ್ನ ಪರವಾಗಿಯೇ ಇದ್ದಾನೆ ಅಂತ ಅಂದು ಕೊಳ್ಳುವುದು ಒಂದು ಒಳ್ಳೆ ಅಭ್ಯಾಸ. ಎರಡನ್ನೂ ಅವನು ನನಗೇ ಸ್ವಲ್ಪ ಹೆಚ್ಚಿಗೆ ಕೊಡ್ತಾನೆ ಎನ್ನುವುದು ನಮ್ಮೆಲ್ಲರ ಭಾವನೆ. ಇದು ನನ್ನ ನಮ್ಮ ಗುಟ್ಟು. ನಾನು ಕುದುಕನಾದದ್ದರಿಂದ ಈ ಗುಟ್ಟು ಹೊರಗೆ ಬಂದಿದೆ ಅಷ್ಟೇ.

-----------------------------------------------------

6. ಮೂಗ್ ಮುಚ್ ಕೊಂಡ್ರೆ ಚಿಕ್ ಮಕ್ಕಳ್ಗೆ, ಬಾಯಲ್ ಉಇತಾರ್ ಎಂಡಾ

ರಾತಿ ಎಲ್ಲಾ ಜಗ್ಲಾಡ್ತಾರೆ, ಕುಡ್ಕೊಂಡ್ ಬಂದ್ರೆ ಗಂಡ

ತಪ್ ಗಂಡನ್ದಲ್ಲ, ಯೆಡ್ತೀದಲ್ಲ, ಕೂಸಿಂದು ಅಲ್ವೇ ಅಲ್ಲಾ

ಸಿದ್ದನ್ ಸಾರಾಯಿ ಮತ್ತಿನ್ ಗಮ್ಮತ್, ಬಾಯಾಗ್ ಹೇಳಕ್ಕಲ್ಲ

ಭಾವ: ನಾವೆಲ್ಲರೂ ನಮ್ಮ ನಮ್ಮ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಒಬ್ಬೊಬ್ಬರಿಗೆ ಒಂದೊಂದು ಆದರ್ಶ ಅಂತ ಇಟ್ಟುಕೊಂಡಿರ್ತೇವೆ. ಆ ನಮ್ಮ ಗುಣಕ್ಕೆ ಆ ಸಿದ್ದಾನೆ ಕಾರಣ. ಅವನ ಆಟವನ್ನು ಬಾಯಲ್ಲಿ ಹೇಳಕ್ಕೆ ಆಗದು.


-----------------------------------------------------

7. ಇನ್ಯಾರ್ಗೆನೋ ನಂಗೊತ್ತಿಲ್ಲ, ನಂಗೆ ನೀನೇ ದ್ಯಾವ್ರು

ನಿನ್ ಅಂಗ್ಡೀನೇ ದೇವಸ್ತಾನ, ಬ್ಯಾರೆವ್ರ್ ಅನ್ಬೈದ್ ಬಾರು

ಹುಳಿ ಸಾರಾಯಿ ಧೂಪದಾಗ್ ಕುಂತೌನ್ ನೋಡೋ ನಮ್ ಸಿದ್ದಪ್ಪ

ಅಂಗಡೀಗ್ ಬಂದೊರ್ಗ್ ಸಾರಾಯಿ ಸಿಕ್ತು, ಬರ್ದೊರ್...... ಐಯೋ ಪಾಪ......



-----------------------------------------------------


8. ಕರಪೂರ್ದ್ ನೀರಾಗ್ ತುಳಸಿ ಹಾಕ್ ಕೊಂಡ್ ಕುಡೀತಾರೆ ಜನ

ಮಣ್ಣಿನ್ ಬುಂಡೇಲ್ ಸರಾಯ್ ಕುಡಿಯಾಕ್ ಯಾಕ್ ಹೆದರ್ತಾರೆ ಜನ

ಹಿಂಗ್ಹಲ್ಹಂಗಂತ್ ಹೇಳಿದ್ರೂನೆ, ಹಂಗಲ್ ಅಂತಾರ್ ಜನ

ಹೆಂಗಾರ್ ಮಾಡ್ಕೊಳ್ ಅಂದ್ರೆ ನನ್ನೇ ಕುಡುಕ್ಹನ್ತಾರೆ ಜನ



-----------------------------------------------------

9. ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗಡೀಲಿ ಒಂದೇ ಒಂದು ದೀಪ ಬೆಳಗ್ತಾನ್ ಅವ್ನು

ಎಲ್ಲರ ನೆತ್ತೀಗ್ ಬೀಳ್ಲಿ ಅಂತ ಮ್ಯಾಗ್ ಇಟ್ಟಿರ್ತಾನ್ ಕಾಣು

ಸಾದ್ವಾದಷ್ಟು ದೀಪದ್ ಕೆಳಿಕ್ಕೆ ಕುಂತ್ಕೋ ಜಾಣ ನೀನು

ಸಿದ್ದನ್ ಸರಾಯ್ ಹೀರು ನೀನು, ನೆರಳು* ಬುಡಕ್ ಬಿದ್ದಿರ್ತಾದ್ ಕಾಣು


ಭಾವ: ನೆರಳು ಅಂದರೆ, ಅಜ್ಞಾನದ ಕತ್ತಲು. ದೀಪದ ಕೆಳಗೆ ಕೂತ್ಕೊಂಡ್ರೆ ಅಜ್ಞಾನದ ಆ ನೆರಳು ಚಿಕ್ಕದಾಗಿಯೂ ಹಾಗೂ ಅದು ನಮ್ಮ ಕೆಳಕ್ಕೆ ಬಂದು ಸೇರಿರುತ್ತದೆ. ಅಲ್ಲಿಗೆ ನಾವು ಆ ಅಜ್ಞಾನವನ್ನು ಮೆಟ್ಟಿದ ಹಾಗೆ. ಅದು ನಮ್ಮ ಬುಡದ ಕೆಳಕ್ಕೆ ಹೋಗಿ ಬಿಡುತ್ತೆ ಅಂತ.



-----------------------------------------------------


10. "ಬರ್ ಬರೀ ಲೇ... " ಅನ್ತೌನ್ ಸಿದ್ದ, ಸಾರಾಯಿ ಕುಡೀಸ್ ಬುಟ್ಟಿ

ಅವ್ನ್ ಏಳಿದ್ ಪದಾನ ಅಂಗೇ ಬರ್ಕಂತೀನ್, ಅವ್ಗಲ್ ಬಾಳಾ ತುಟ್ಟಿ

ಬರದಿದ್ ಪದಾನ ಜನಕ್ ಏಳಿದ್ರೆ, ಅವ್ಕೇನ್ ತಿಳೀತೋ ಕಾಣೆ

ಗುಟ್ಟಿನ್ ವಿಸ್ಯ ಒಂದ್ ಏಳ್ತೇವ್ನಿ, ನಂಗೂ ತಿಳೀವ್ ಅವ್, ನನ್ ಆಣೆ....



ಭಾವ: ನಾನು ಬರೆಯೋ ಸಾಲುಗಳೆಲ್ಲ, ಆ ಸಿದ್ದನು ನನಗೇ ಸಾರಾಯಿ ಕುಡಿಸಿ "ಬರಿ" ಅಂತ ಅಂದಾಗ ಬರೆಯುವ ಸಾಲುಗಳು. ನಾನು ಆ ಮತ್ತಿನಲ್ಲಿ ಇದ್ದಾಗ ಅವನು ನನಗೆ ಬರಿ ಅಂತ ಅಂದು, ಅವನು ಹೇಳುವ ಸಾಲುಗಳನ್ನು ನಾನು ಹಾಗೆಯೇ ಬರೆದುಕೊಂಡು ಬಿಡುತ್ತೇನೆ.

-----------------------------------------------------

11. ಎದ್ರೀಗ್ ಕುಂತೊವ್ನ್ ಕಾಣಾಕ್ ಮನ್ಸ ಯಾಕೋ ತಿರ್ಗಾಡ್ತಿ

ಕಣ್ಣಾಗ್ ಇರೋನು ಕಾಣ್ಸಾಕಿಲ್ಲ ಅಂತ ಪದ್ವಾಡ್ತೀ

ಕುಡುಕನ್ ಜೀವ್ನ ಲೇಸು ಕಣ್ಲ, ಕುಡೀದೆ ಯಾಕ್ ಸಾಯ್ತೀ

ಬುಂಡೇನೇ ಮುಟ್ಟಕ್ ಆಗ್ದೋದ್ ಮನ್ಸ, ದೇವ್ರನ್ ನೋಡ್ ಏನ್ ಮಾಡ್ತೀ



ಭಾವ: ನಮ್ಮ ಎದುರಿಗೆ ಹಾಗೂ ನಮ್ಮ ಒಳಗೆ ಇರುವ ಸಿದ್ದನನ್ನು ಕಾಣಲು ಮನುಷ್ಯ ಎಷ್ಟು ಕಷ್ಟಪಡ್ತೀಯೋ?

ಸಿದ್ದನ ಸಾರಾಯಿ ಕುದಿತೋ ತನಕ ನಿನಗೆ ಈ ಸತ್ಯ ಗೊತ್ತಾಗುವುದಿಲ್ಲ.

-----------------------------------------------------

12. ಒಳಿಕ್ ಸಾರಾಯಿ ಓದ್ರೆ ನಂಗೆ, ದುಃಖ ಓಡ್ ಬರ್ತೈತ್ ಒರಿಕ್ಕೆ

ಬಡ್ ಬಡ್ ಅಂತ ಬಡ್ಬಡಾಯಿಸ್ತೀನ್, ಸಿದ್ ಇದ್ರೆ ಜೋತೀಕೆ

ಕುಡ್ಸೋನ್ ಅವ್ನು,ಕುಡ್ಯೋನ್ ನಾನು, ನೀನ್ಯಾರ್ಲಾ ಕೇಳಾಕೆ

ನಮ್ ಸಂಬಂದ್ ದಾಗ್ ಮೂಗ್ ತೋರ್ಸಾಕ್ ಬಂದ್ರೆ, ಇರಲ್ಲ ಸರ್ಯಾಕೆ

-----------------------------------------------------


13. ಸಾಲ ಮಾಡಿದ್ ಸಾರಾಯಿನಾಗೆ, ಏನೋ ಒಂದು ಮತ್ತು

ಸಾಲ ಮಾತ್ರ ಸಿದ್ದನ್ ತಾವೇ ಮಾಡ್ ಬೇಕ್ ಅಂತ್ ನಂಗ್ ಗೊತ್ತು

ಸಾಲ್ ಕೇಳಿದ್ರೆ, ಬೈತನ್ ಸಿದ್ದ, ಆದರೂ ಅವ್ನ್ ಮನ್ಸ್ ಮೆತ್ತು

ಕೇಳ್ದೆ ಓದ್ರೂ ಬೈಕೊಂತಾನೆ, ಆವತ್ ನಾನ್ ಕಡ್ಮೆ ಕುಡ್ದೀನ್ ಅಂತ್ ಅವಗ್ ಗೊತ್ತು



-----------------------------------------------------

14. ಸಿದ್ದಪ್ಪಣ್ಣ ಕೇಳ್ತೀನ್ ಒಂದು ಗುಟ್ಟಿನ್ ವಿಸ್ಯ ನಿಂಗೆ

ಈಸೊಂದ್ ಸಾರಾಯಿ ನಿನ್ ತಾವ್ ಐತೆ, ನೀನ್ ಕುಡೀತಿ ಏನಾರ್ ಎಂಗೆ?

ಇರ್ಲಿ ಏಳು ನನ್ ತಾವ್ ವಿಸ್ಯ, ನಾನ್ ಯಾರ್ಗ್ ಏಳಾಕಿಲ್ಲ

ಏಳಿದ್ರೂನೆ, ಕುಡ್ಕಾ ನಾನು, ಜನ ನನ್ ಮಾತ್ ನಂಬಾಕಿಲ್ಲ



ಭಾವ: ನಮಗೆ ಕಷ್ಟ-ಸುಖ ಕೊಡುವ ದೇವರಿಗೂ ಕಷ್ಟ -ಸುಖ ಅಂತ ಇರುತ್ತಾ? ಅಥವ ನಮ್ಮ ಕಷ್ಟ-ಸುಖದಲ್ಲೇ ಅವನು ಅವನ ಕಷ್ಟ-ಸುಖ ಕಂಡು ಕೊಳ್ತಾನ?

ಇರ್ಲಿ ಸಿದ್ದಪ್ಪ, ನನ್ನ ಹತ್ರ ಹೇಳು ನಿನ್ನ ಗುಟ್ಟು.

ನನಗೆ ನಿನ್ನ ಗುಟ್ಟು ಗೊತ್ತು, ಅಂತ ಅಂದ್ರೂ, ಈ ಜಗತ್ನಲ್ಲಿ ನಂಬೋ ಜನ ಇಲ್ಲ.



-----------------------------------------------------

ನಸಕ್ ನಸಕ್ಲೇ ಮುಸ್ಕ್ ಹೊದ್ಕೊಂಡ್ ಮಲಗಿದ್ ಮನ್ಸಾ ನಾನು


ಯಾವ್ದೋ ಗಾಳಿ ಬೀಸ್ ಎಬ್ಬಿಸ್ತು, ಯಾವ್ದದ್ ಅಣ್ಣಾ ಕಾಣು

ಎದ್ ಬಿಟ್ ಕೂಡ್ಲೇ, ಎದ್-ಬಿದ್ ಓಡ್ದೆ , ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗಡೀಗ್ ನಾನು

"ನಿಂಗೇ ಕಾದ್ಕೊಂಡ್ ಕುಂತೀನ್....ಬಾರೋ" ಅಂದ, ಸಿದ್ದ ನಗ್ಕೊಂತ್ ಕಾಣು



---------------------------------------------------------------------------------------------


ಯೇಸೊಂದ್ ಮಕ್ಳ್ ಇದಾವ್ ನನ್ ಮನ್ಯಾಗ್, ಯಾರ್ನ್ ಹಿಡ್ಕೊಳ್ ಯಾರ್ನ್ ಬುಡ್ಲೀ

ಬೆನ್ನೀಗ್ ಕಟ್ಕೊಂಡ್ ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗ್ಡೀಗ್ ಹೋಗದೆ, ಇವ್ಗಳ್ನ್ ಒಬ್ಬರ್ನೆ ಯಲ್ ಬುಡ್ಲೀ

ಇವ್ಕೂ ದಿನಾ ಸರಾಯಿ ಕುಡ್ಸೀ ಬೇಳೆಸ್ ಬೇಕು ನಾನು

ಒಂದ್ ದಿನ ಇವ್ಗಳ್ ದೊಡ್ದವ್ರಾಗಿ ಆಕಾಶ್ದಲ್ ತೂರಾಡ್ತಾವ್ ಕಾಣು



---------------------------------------------------------------------------------------------

ಈಚಲ್ ಮರ್ದಾಗ್ ಕೂತ್ಕೊಂಡ್ ಕುಡದ್ರೆ, ಸಾರಾಯಿ ರುಚಿ ಕೊಂಚ ಜಾಸ್ತಿ

ಈಚಲ್ ಹಣ್ಣೇ ಆಗೊದ್ರಣ್ಣ, ಬೇಡ ಇನ್ಯಾವ್ದ್ ಆಸ್ತಿ

ಸಿದ್ದನೂ ಅವೇ ಹಣ್ ಕಿತ್ಕೊಂಡು ಸಾರಾಯಿ ಮಾಡೋದಂತೆ

ತಲ್ ಕೆಳ್ಗಿರೋ ಈಚಲ್ ಮರ್ ದಲ್ ಹಣ್ ಆದ್ರ್ ಎಲ್ಲಾ, ಇಲ್ ಯಾರ್ಗ್ ಎನೈತ್ ಚಿಂತೆ



---------------------------------------------------------------------------------------------


ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗ್ಡೀಗ್ ಹೋಗೋ ದಾರಿ ಒಂದ್ ನಾನ್ ತಿಳ್ಕೊಂಡಿವ್ನಿ

ನಿನಗೂ ತೋರಿಸ್ಬೇಕ್ ಅದನ್ನ ಅಂತ್ ನಾನ್ ಅಂದ್ಕೊಂಡಿವ್ನಿ

ನಂಗೂ ನಿಂಗೂ, ಆ ದಾರಿ ನೋಡು, ಬೇಧ ಮಾಡೋಲ್ವಂತೆ

ರಾಜನ್ ಕೂಡ ಅದೇ ದಾರೀಲ್, ನೋಡ್ ಎಳ್ಕೊಂಡ್ ಹೋಗ್ತಾರಂತೆ



---------------------------------------------------------------------------------------------


ಊರಾಚೆ ಇರೋ ಪಾಳ್ ಅರ್ಮನ್ಯಾಗ್, ಹಲ್ಲಿ-ತೋಳ ಕೂಗ್ತಾವಂತೆ

ಅದ್ರಾಗಿರೋ ಸಿಮ್ಹಾಸಂದಾಗ್ ಇಲಿಗಳ್ ಕೂರ್ತಾವಂತೆ

ಯಾರ್ ಯಾರ್ ಎಲ್ ಎಲ್ ಕೂರ್ತೌರ್ ನೋಡು, ಇದು ಯಂಥ ಕರ್ಮ

ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗ್ದೀ ಜಗ್ಲೀನೇ ಸಾಸ್ವತ ನಮ್ಗೆ, ಇದ್ರಾಗೆನೈತ್ ಮರ್ಮ



---------------------------------------------------------------------------------------------



ಈಚಲ್ ಮರದ್ ಕೆಳಿಕ್ ಬಾಳಾ ತಂಪು, ಸರಾಯಿಗು ಬರ್ತೈತ್ ಜೋಂಪು

ಕಾಗ್ದದಲ್ ಗೀಚ್ಕೊಂಡ್ ಪದ್ವಾಡ್ತಿದ್ರೆ, ಮರೀಬೋದ್ ಎಲ್ಲ ನೆಂಪು

ಸಿದ್ದ್ನೂ ಅಲ್ಗೆ ಬರ್ತಿರ್ತೊವ್ನೆ, ಹಣ್ಗಳ್ ಕಿತ್ತ್ ಕೊಳ್ಳೋಕೆ

ಅದೇ ಹಣ್ ನಲ್ ಸಾರಾಯ್ ಬಸ್ದು, ಅಂಗ್ಡೀಗ್ ಬಂದೊರ್ಗ್ ಕೊಡೋಕೆ



---------------------------------------------------------------------------------------------



ನಾನೂ, ಸಾರಾಯ್ ಸೇರ್ ಕೊಂಡ್ ಮತ್ತನಲ್ ಸಿದ್ದನ್ ಕಾಣ್ತೀವ್ ನೋಡು

ಕಂಡದ್, ಕಾಣದ್ ಅನ್ಬೈಸಿದ್ದು ಪದ್ವಾಡ್ತೀವಿ ನೋಡು

ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗಡೀಲ್ ಸಿಗೋ ಜ್ಞಾನ, ಇನ್ನೆಲ್ ಸಿಗಾಕಿಲ್ಲ

ಸಾರಾಯ್ ಮತ್ತಿನ್ ಗಮ್ಮತ್ ಅಣ್ಣ ಹೇಳಿದ್ರ ತಿಳಿಯಾಕಿಲ್ಲ



"ಓಂ ತತ್ ಸತ್ "



ಸತ್: ದೇವರ ಮೂರ್ತ ಸ್ವರೂಪ, ಪ್ರತ್ಯಕ್ಷ್ಯ ವಾದುದು,

ತತ್: ದೇವರ ಅಮೂರ್ತ ಸ್ವರೂಪ

ಓಂ: ಮೂರ್ತ ಹಾಗೂ ಅಮೂರ್ತ ಸ್ವರೂಪಗಳೆರಡೂ ಒಂದೇ ಹಾಗೂ ಎಅದೂ ಒಂದೇ ಶಕ್ತಿಯ ರೂಪಕಗಳು ಎಂದು ತಿಳಿಸುವ ಅರಿವು.

ಆತ್ಮ ಸಾಕ್ಷಾತ್ಕಾರ ಅನುಭೂತಿ.



ಇಲ್ಲಿ,

ನಾನು: ಸತ್

ಸರಾಯಿ:ತತ್

ಮತ್ತು: ಓಂ



---------------------------------------------------------------------------------------------



ಜಳಕ ಮಾಡಿ ಹಚ್ಕೊಂಡಿದ್, ಪಟ್ಟೆ- ನಾಮ ಅಳ್ಸ್ ವೈತು

ಕೂಲಿ ಮಾಡಿದ್ ಬೆವಿರ್ನಾಗೆ, ಎಲ್ಲಾ ಕೊಚ್ಕೊಂಡ್ ವೈತು

ಆದರೂ ಕೂಡ ಒಂದ್ ತೊಟ್ಟ್ ಆಸೆ ಮನ್ಸಾಗ್ ಉಳ್ಕೊಂಡ್ ಬಿಡ್ತು

ಸಾರಾಯ್ ಕುಡೀದೆ ಮಲ್ಗಾಕ್ ಮನಸ್ ಯಾಕೋ ವಪ್ಪದೆ ವೈತು



ಮೈ ತೊಳ್ಕೊಂಡು, ಅಥವಾ ಮೈ ಪದರ ತೊಳೆದುಕೊಂಡು ನಾಮ-ಪಟ್ಟೆ ಹಚ್ಕೊಂಡಿದ್ದೆಲ್ಲ ಮೇಲಿನ ಶೃಂಗಾರಗಳು,

ಸಾಧನೆಯ ಹಾದಿಯಲ್ಲಿ ಶ್ರಮಿಸಿದಾಗ ಮಾಯವಾಗುತ್ತವೆ. ಎಲ್ಲಾ ಆಸೆ ಬಿಟ್ಟೆ ಅಂತ ಅಂದವನಿಗೂ, ಮೋಕ್ಷದ ಆಸೆ ಬಿಡಲಿಲ್ಲ.



---------------------------------------------------------------------------------------------





ತೋರ್ಣ ಕಟ್ ಬುಟ್, ರಂಗೋಲಿ ಬುಟ್ ಬುಟ್ ಕಾಯ್ಬೇಕ್ ಅಂತಾರ್ ಜನ

ಗಂಟೆ ಬಾರ್ಸಿ, ದೀಪ ಹಚ್ಚಿ, ಸಿದ್ದನ್ ಕಂಡೋರ್ ಎಷ್ಟ್ ಜನ ?

ಬಲ್ ನನ್ ಮಗ ಸಿದ್ದ ಅವ್ನು, ಯಾರ್ ಯಾರ್ಗ್ ಎಲ್ ಎಲ್ ಕಂಡ್ನೋ ?

ಬುಂಡೇನ್ ಬಾಯಾಗ್ ಬಸಿದ್ಕೊಂಡ್ ಬುಟ್ರೆ ನಂಗ್ ಅವ್ನ್ ಅಲ್ಲೇ ಕಂಡ್ನೋ



ಹೊರಗಿನ ಜನರಿಗೆ ತೋರಿಕೆಗಾಗಿ ಮಾಡುವ ಆಡಂಬರಗಳು, ನಮ್ಮ ಗಂಟೆಯನ್ನು ನಾವು ನಾಲ್ಕು ಜನರಿಗೆ ಕೇಳುವ ಹಾಗೆ

ಬಾರಿಸಿ ಮಾಡುವ ಪ್ರಚಾರದಿಂದ ಎಷ್ಟು ಜನಕ್ಕೆ ದೇವರು ಕಂಡಿದ್ದಾನೆ? ಅವನು ಯಾರ್ಯಾರಿಗೆ ಎಲ್ಲಿಲ್ಲಿ ಯಾವುದರಲ್ಲಿ ಕಂಡಿದ್ದಾನೋ ಯಾರಿಗೆ ಗೊತ್ತು.





---------------------------------------------------------------------------------------------



ಹೇಳ್ ಹೇಳು ಸುಳ್ಳೆಲ್ಲ ಸಂಜೆ ಯಾಗೋ ಗಂಟ

ಬಾಳ್ ರಾತ್ರಿ ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ ಸುಳ್ ಹೇಳುವವರಿಲ್ಲ

ಸಂಜೆ, ಸಿದ್ದನಂಗಡಿ ಕದವು ತೆಗೆಯೋ ಗಂಟ ಸುಳ್ಳು

ಸಿದ್ದನ ಸಾರಾಯಿ ಹೀರಿದರೆ ನಿಜ ನಿಜವು ಎಲ್ಲಾ



ಒಂದು ಜನ್ಮವನ್ನು, ಒಂದು ದಿನವೆಂದು ನೋಡಿದರೆ, ನಮಗೆಲ್ಲ ಸಾಧಾರಣವಾಗಿ ಆಧ್ಯಾತ್ಮದ ಬಾಗಿಲು ತೆರೆದುಕೊಳ್ಳುವುದು ಜೀವನದ ಸಂಜೆಯಲ್ಲಿ.

ಸಂಜೆಯೆಂದರೆ, ನಮ್ಮ 'ವ್ಯವಹಾರ'ಗಳನ್ನೆಲ್ಲ ಮುಗಿಸಿ 'ಮನೆ'ಗೆ ಹೋಗಿ 'ವಿಶ್ರಾಂತಿ' ಪಡೆಯುವ ಸಮಯದಲ್ಲಿ. ಸಾಧಾರಣವಾಗಿ ಆ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ನಮಗೆ ಸುಳ್ಳಿನ ಸಹಾಯ ಬೇಕಾಗುವುದಿಲ್ಲ. ಹಾಗಾಗಿ 'ಕುಡಿದವರು' ಸುಳ್ಳು ಹೇಳುವುದಿಲ್ಲ....

---------------------------------------------------------------------------------------------

ಬಿಂದು

ಅಮೂರ್ತ ಬಿಂದುವೇ, ತ್ರಿಮೂರ್ತ ಬಿಂದುವೇ

ಜಗದ ಜೀವವೆಲ್ಲಾ ನಿನ್ನೊಳಗೆ ಬಿಂದುವೇ



ಮನದ ಗರ್ಭದಲ್ಲಿ ಕೂಡಿ, ಕೈಯ ಬೆರಳಿನಲ್ಲಿ ಮೂಡಿ

ಜೀವ ಜಂತುಗಳಲಿ ಆಡುತಿರುವ ಬಿಂದುವೇ

ಜೀವ ಕೋಟಿಗಳನು ಆಡಿಸುತಿರುವ ಬಿಂದುವೇ



ಕಣದ ರೂಪಿಯಾದ ನೀನು, ಕಣ ಕಣದಿ ಹೊಕ್ಕೆಯೇನು

ಕಣವೇ ಕಣಿವೆ ನುಂಗಿ ಕುಂತ ಮಹತ್ ಬಿಂದುವೇ

ಆರ ಹೊಟ್ಟೆಯಿಂದ ಹುಟ್ಟಿ ಬಂದೆ ಬಿಂದುವೇ



ಕನಸಾವತರಣ

ಕನಸು ಒಂದು ಕನಸಿನಲ್ಲಿ ಮೈಯ್ಯ ತಾಳಿತು

ಮುನಿಸು ಭಾವ ಸ್ಪಷ್ಟವಾಗಿ ಭಾಸವಾಯಿತು

ಕೋಪದಿಂದ ಬುಸುಗುಡುತ ಕನಸು ಬಂದು ಕುಂತಿತು

ಮೂಧರೊಡನೆ ಮಾತು ಸಲ್ಲ, ಮೌನ ಲೇಸು ಎಂದಿತು



ಬಿಕ್ಕೋ ಕನಸು ಅಶಕ್ತವೆಂಬ ಮಾತು ನಿನ್ನದಾ?

ಬೀಳೋ ಕನಸು ಕೀಳು ಎಂಬ ಕಣ್ಣು ನಿನ್ನದಾ?

ಸ್ಫೂರ್ತಿ ರೂಪಿ ತಾಯಿ ನಾನು, ಪರಾವಲಂಬಿ ಎಂದೆಯಾ?

ತಾಯಿಗೆ ಉಣಿಸಿ ಬೆಳೆಸುವಷ್ಟು ಹಿರಿಯನಾದೆಯಾ?



ನೋಡು ಒಮ್ಮೆ ಅವತಾರವನ್ನು ಅಂತ ಕಣ್ಣು ಎಂದಿತು

ಪಾಪಿ ಕಣ್ಣು ನೋಡಲಾರದೆಂದು ಮನಸು ತಿಳಿಸಿತು

ಮನಸು ಹೊಕ್ಕು ಆಕೆ ಕ್ರೋಧವೆಲ್ಲ, ಏನೇನೊ ಆಯಿತು

ಪಾಪವೆಲ್ಲಾ ಕಣ್ಣೀರು ಆಗಿ ಹೊರಗೆ ಹರಿಯಿತು



ಮೌಡ್ಯವೆಲ್ಲ ಕನಸ ತಾಯಿ ಚರಣಕೆರಗಿ ನಿಂತಿತು

ಪಾಪ ಪ್ರಜ್ಞೆಯಿಂದ ಮೈಲಿ ಮಿಂಚು ಮೂಡಿತು

ಅಧಪಾತವನ್ನು ಅವತಾರವೆಂದ ಕವಿ ಮಾತು ಅರ್ಥವಾಯಿತು

ತಾಯಿ ಸಿಟ್ಟು ಕೂಡ ಒಡನೆ ಮಾಯವಾಯಿತು



'ಕನಸು ಬಿತ್ತು' ಎನ್ನೋ ಬಾಯಿ ಬಿದ್ದು ಹೋಯಿತು

ಕನಸಾವತರಣ ಕಂಡ ಮನಸು ಹಿಗ್ಗಿ ಹಾರಿತು

ಸಿದ್ದನ ನಿದ್ದೆ !!

ಬರುತಿದೆ ಕಾಣೋ ದೇವಿಯ ತೇರು

ಭಕುತಿಲೆ ಕಣ್ಣನು ಮುಚ್ಚಿಹನು

ಆವರಿಸಿತೋ ಆ ದೈವೀ ಶಕ್ತಿಯು

ಮೈ ಮರೆತು ತೂರಾಡಿಹನು



ಮೂಡನು ಎಂದ ಮಲಗಿದ ಸಿದ್ದ

ಸಿದ್ಧನು ಒಳಗೇ ನಗುತಿಹನು

ಮತ್ತದು ಅಹುದು, ಸಿದ್ಧನವನಹುದು

ನಿದ್ದೇಲಿ ಎದ್ದು ಕುಳಿತಿಹನು

IN THE TEMPLE OF STONE



O my mother in the temple of stone

I wonder for how long your eyes have glown?

All my life, at your feet is thrown

What better place shall be called a throne?


O my mother, my life your own

The ocean of bliss, through eyes is flown

Unveil the sight of the ocean you own

The forces be left and the forms be gone


I seek the light of the divine sight

My soul has eyes that could soak thy light

Let me bathe in the light of thy sight

Let your light be my only might

THE DIVINE BREATH



The divine breath, the propeller of my ship

I feel it on my sail opened through worship


The ocean is vast and if I am lost

The breath is my guide and will direct my ride


It comes and it goes, in a rhythmic dance

Striking a balance of cries and smiles



I feel the breath and I see it dance

Whenever I enter the state of trance


Fill my sail and I shall never fail

Fill my soul and I shall see the goal


Lead me to the direction for which I was born
Lead me, though hidden be the borne

MIGHTY SEA OF LIGHT



See the mighty sea of light

Feel the light of the infinite might

Might I say, I saw the light

I feel my heart full of delight


In the body and in space

I embrace the fire, and see thy face

In the soul and deep within

The fire is dancing and glowing within


Encroach and engulf my soul as whole

The spirit within was without a goal

There is a vastness so tranquil

When you come within, and you fill

SUN BREASTED MOTHER



O the sun breasted Mother

Feed me thy milk of light

Feed me the light of the universe

So I shall know what’s right


Feed me thy milk and

My blood will glow with thy light

My soul needs it

Else how shall I alight?


O Mother, here I come

to thy temple within and pray for light

Feed me and I shall see the path

that leads to your Home of Delight

राख से मैं आज फिर नया आशियाँ बनाने चलता हूँ

जल गया सपना वो मेरा


राख वह बटोरे चलता हूँ

राख से मैं आज फिर

नया आशियाँ बनाने चलता हूँ



आंसू से अपने, राख को गोंदे

मन-भट्टी में तपा-तपाके

ईंट बनाता चलता हूँ

राख से मैं आज फिर

नया आशियाँ बनाने चलता हूँ



फिर जनेगा नए रूप में

यह सपना फिर से जीता हूँ

इस बार थोडा और बड़ा सपना

देखने की हिम्मत बटोरे चलता हूँ

राख से मैं आज फिर

नया आशियाँ बनाने चलता हूँ



जल जल मिटेगा; अश्रु पी, उठेगा

हर बार यह देखे हँसता हूँ

सपने को फिर जलने के लिए

मैं फिर तैयार लो करता हूँ

राख से मैं आज फिर

नया आशियाँ बनाने चलता हूँ



तब तलक मज़बूत इतना

सपना मेरा बन जाएगा

खुदा भी इसको देखना

फिर जला ना पायेगा

इस बार थोडा और बड़ा सपना

देखने की हिम्मत बटोरे चलता हूँ

राख से मैं आज फिर

नया आशियाँ बनाने चलता हूँ



जलने से निर्भीत ऐसा

ज्वलंत सपना मैं रचने चलता हूँ

साकार जो हो, वह मेरा सपना

श्रेय तुझे देने का सपना देखे मैं चलता हूँ

राख से मैं आज फिर

नया आशियाँ बनाने चलता हूँ

ये मय का शीशा जो आज यु पाश-पाश है

ये मय का शीशा जो आज यु पाश-पाश है

जाम भी तो कोई नहीं आस-पास है

हां, जानता हूँ मै दोस्ती के काबिल नहीं

दुश्मन भी क्यों नहीं आस पास है?



बहुत तनहा हूँ आज,ऐसे कैसे जिया जाए?

अब हँसी कि आस नहीं, कोई आंसू तो पिला जाए

माना कि मै बेहद बेपाक हूँ

कोई आके एक घडी बैठ, दो गाली तो सुना जाए



अँधेरे में मै, न जाने किसे ढूँढता हूँ

सुख न सही, कोई आके दुःख तो पिला जाए

ऐसी भी क्या खता हुई मुझसे

कि जिन्हें याद किया,वो आज याद भी न आये



गर्द बनी ज़िन्दगी से अब क्या माँगा जाए

हसने का नहीं तो रोने का ख्वाब ही देखा जाए

इतना बदनसीब मैं कैसे हूँ आज

आँख से दो आंसू भी निकाला नहीं जाए







मय: शराब

पाश-पाश : चूर चूर

गर्द: Dust

आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी


आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो

छीन ले मुझसे मेरी हँसी जो तेरे बस में हो

फूल देना उन्हें जो सहमकर तुझसे मांगते हो

बिछा देना कांटे सारे मेरे पग पर जो तेरे बस में हो



रौंद रौंद काँटों को, जो पाँव मेरे छिलते हो

गिला नहीं, जो रक्त के छाप पग पर छपते हो

रहेम न खा मुझपर ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो

आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो



सेज चाहे अंगारों का ही जो मेरा सजता हो

अपमानों की लोरी हम रोज़ रात ही जो सुनते हो

सुबह हँसने से, रोक ले रे ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो

आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो



बैर नहीं उनसे, तुझसे फूलों का सेज जो मांगते हो

चूक कर भी वह फूल जो मेरे पग पर चाहे मिलते हो

झुका ले मुझे, फूल उठाने की खातिर, जो तेरे बस में हो

आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो



अमृत का प्यासा, चाहे तुझसे, अमृत घट ही मांगता हो

खुश हूँ, प्यास जो मेरी, आँसूं से ही जो मिटती हो

अमृत घट को अश्रु-स्वेद से, भरने से रोकलो जो तेरे बस में हो

आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो



लोग यहाँ के, अमरता का, वर जो तुझसे मांगते हो

गिरने से औ मिटने से, शायद जो वो डरते हो

जाने से पहले ,एक बार फिर लड़ने से रोकले जो तेरे बस में हो

आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त


इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता

साथ बैठ वो गर्म हाथ तेरा

मै कुछ देर और पकड़ता



दो बातें साथ बैठ तू और करता

मै सर अपना तेरे कन्धों पे

थोड़ी देर और रखता

दो घडी मेरे साथ तू और रुकता

शायद मै एक और बार तुझे हंसा देता

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता



दो कदम मेरे साथ तू और चलता

तेरा हाथ थामे मै दुनिया को

थोडा और समझता

तेरे बचपन की एक कहानी तू और कहता

शायद मै ज़िन्दगी को थोडा और समझता

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता



दो घडी खुदा से उस दिन और अड़ता

जैसे भिड़ता था रोज़, उस दिन भी

थोडा और भिड़ता

जाना तो सबको है मेरे दोस्त

तू दो दिन और रुकता

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता



छुपती है दुनिया इस कारवाँ में



छुपती है दुनिया इस कारवाँ में

हर चेहरा है छुपता किसी दूसरे में

वीराने पथ पर चलता हूँ पथिक अकेला

कारवां में तो खूब सजा है मेला



कभी पुछा किसीने कि,

किस चीज़ का है ये मेला?

क्या क्या बिका है यहाँ,

या खुद बिका है मेला?



कैसा है कारवाँ यह,

क्या है यह झमेला

एक कारवाँ में क्यों,

हर पथिक है चलता अकेला



खेल अनोखे मेले में है

है रंग अनोखा इसका

जीतने के लिए है मस्का

और हराने का है सबको चस्का



कभी पूछा है कारवाँ से

कि उसकी मंजिल है किस ओर?

या फिर यह मुड़ता है

कि जिस तरफ बड़ा है ज़ोर?



वाह क्या अजब का रचा है मेला

हर आदमी खड़ा है लेकर अपना ठेला

क्या क्या न बिका यहाँ यह पूछो

पहेली यह बूझ सको तो बूझो



वीराना शायर कुछ लिखना है चाहता

कागज़ कलम भी तो मेले में है बिकता

आंसू पर किसीके न कभी रोया है मेला

शर्म को भी तो इसने है बेचा हर सवेरा







भूक को बेचा है, दर्द को भी है बेचा

हो सके तो लाश को भी है सजाकर बेचा

किसीने गुर्दा है बेचा तो किसीने दिल भी है बेचा

किसीने बेटी को बेचा तो किसीने माँ को भी है बेचा



बेचने का यह कैसा होड़ लगा है अन्दर

होड़ के कोड ने यह क्या सजाया मंज़र

बच्चों कि तकदीर में घुसाया खंजर

मेला है या है दुःख का समंदर



मजबूरी है सबकी जो मेले में है घुसते

रंगीन मेले में जो बेचा, तो है वो फसते

एक भी चेहरा न दिखा है हँसते

ज़िन्दगी खुद बिकी है यहाँ बहुत सस्ते



हर कोई बेचता है यहाँ जो सामान उसका नहीं

उधार पे जो लाया, वो बेचा है, पूछने वाला कोई नहीं

ए खुदा तू रहम इतना मुझपर कर दे

कुछ भी न बेच सकू यहाँ,

ऐसा कुछ सामान मेरी झोली में भर दे

मुकुट उतरा है माँ का अब तक

2. कश्मीर की वेदना से जन्मा एक गीत






मुकुट उतरा है माँ का अब तक

कल शीश भी काटा जाएगा

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



एक बार कट चुकी है माता

क्या फिर से कटता देखेगा ?

माँ को काटने क्या फिर से कोई

नयी तलवार उठाएगा?

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



आने वाली संतति पूछेंगी

माता बहनों की आँखें पूछेंगी

तू क्या जवाब दे पायेगा

यमराज के आँगन में भी तुमसे

यही प्रश्न पुछा जाएगा

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



"हम निष्क्रिय हैं,हम निष्क्रिय हैं"

क्या यह राष्ट्रगीत गवाया जाएगा?

त्राहि त्राहि की लोरी सुनकर

नित बच्चा तेरा सोयेगा

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



हमको फिर से जगना होगा

राम-कृष्ण को जनना होगा

सिंहासन को ठोकर दे कर

कानन में संहार को रचना होगा

पाञ्चजन्य फिर बजना होगा

गीता को लोरी बनना होगा

"वन्दे मातरम,वन्दे मातरम"

कोटि कंठ को गाना होगा

हर बेटे को चन्द्रगुप्त औ

पिता को चणक भी बनना होगा

हर माँ को जीजाबाई औ

बेटी को लक्ष्मीबाई अब बनना होगा



शोषित शोणित आज उबलता

अपमानित अस्मिता है आग उगलता

दग्द कंठ अब है हून्कारता

हिमगिरी से भी है रूद्र पुकारता

चलने वाले चलते जायेंगे

रणचंडी के हार में अपने

शीश फिरोकर अमर हो लेंगे

मैं हिन्दू कहलाता हूँ

1.हिन्दू जना नहीं करते, हिन्दू बना करते हैं


मानने से हिन्दू नहीं बनते, जानने से हिन्दू बनते हैं

मैं मानता नहीं मैं हिन्दू जना था, मैं जानता हूँ मैं हिन्दू बना हूँ







मैं हिन्दू कहलाता हूँ





ज्योति प्रखर वह अंतरतम में

तम नित्य जलाये जाता हूँ

पड़ोसियों के घर में चिंगारी

इसलिए डाल न पाता हूँ

अँधियारे में जलता हूँ मै

अन्धकार से लड़ता हूँ

कोई माने या ना माने

मैं हिन्दू कहलाता हूँ



लूटने वाले आये थे सब

कोहिनूर ही लूट गए

कुछ और ना दिखा राही तुमको?

तुम्हारी दृष्टिहीनता पर मैं रोता हूँ

दाता हूँ मैं, जग में अब तक

मैं संस्कार लुटाता हूँ

कोई माने या ना माने

मैं हिन्दू कहलाता हूँ



वसुंधरा को 'माँ' मैं कह कर

'वसुदैव कुटुंब' कह पाता हूँ

अश्रु स्वेद औ रक्त सिक्त हूँ

पर क्षमा की बात मैं कर पाता हूँ

हिन्दू हूँ मैं, हिन्दू हूँ मैं,

कर्म से यह कहता जाता हूँ

कोई माने या ना माने

मैं हिन्दू कहलाता हूँ







विष को पीकर, अमृत दे कर

नीलकंठ बन जाता हूँ

अग्नि में जलकर, राख मैं बनकर

भस्म रूप जो पाता हूँ

महाकाल के मस्तक पर मैं

सृष्टि गीत लिख पाता हूँ

कोई माने या ना माने

मैं हिन्दू कहलाता हूँ

Tuesday, February 28, 2012

ಕಣ್ಗುಟುಕು ಕೋರಿ ಕುಂತಿರುವೆ ಗುರುವೆ ನಿನಗಿರಲಿ ಕೊಂಚ ಕರುಣಾ


ಬಾನ್ಗಣ್ಣ ತೆರೆದು ಒಳಗಣ್ಣಿಗುಣಿಸೋ ನೀ ತಮವ ಹಿಂಗೋ ಕಿರಣ



ಬಾನ್ಗಡಲ ಒಡಲ ಬಸಿರಿಂದ ಬಸಿದು ಬರಬೇಕು ದೇವ ಕಿರಣ

ತಾನ್ಹೊಕ್ಕಿ ನಾನ್ಹೀರಿದಾ ಸತ್ತ್ವವೆಲ್ಲವೂ ಬೆಳಕು ಬಿಳಿ ಪೂರಣ



ಜಗದಿರುಳ ಗರ್ಭದಿ, ನೀನಿರಲು ಎನ್ಜೊತೆ, ನಿಜ ಒಳಬಿಂಬ ತೋರೋ ಕಿರಣ

ಮಣ್ಧೂಳು ಬಾನೆಲ್ಲ ಕವಿದಿರಲು, ನೀನಿರಲು ನಿಜ ಬಾನ್ಬಣ್ಣ ಕಂಡೆ ಕಿರಣ



ವಿವರಣೆ:

ಆಧ್ಯಾತ್ಮದ ಮನೆಯಿಂದ ಶುರುವಾದ ಈ ಕವಿತೆ, ಸಾಗುತ್ತಾ ಹೋದಂಗೆ, ನನಗೇ ಅಚ್ಚರಿ ಆಗುವಂಥ ಒಂದು ರೂಪ ತಳೆದು ನನ್ನೆದುರಿಗೆ ನಿಂತುಕೊಂಡಿತು.

ಇದರ ಮೂಲ ಅರ್ಥ 'ಗುರು ನಮನ' ವೇ ಆಗಿದ್ದು, ಇದರಲ್ಲಿ ಇನ್ನೊಂದು ವಿಶಿಷ್ಟ ವೈಜ್ಞ್ಯಾನಿಕ ಅಂಶವೂ ಇದೆ ಅನ್ನುವುದು ನನ್ನ ಊಹೆ.

ಕೆಳಗಿನ ವಿವರಗಳು, 'ಕೊಳಿಗಿಂತಾ ಮಸಾಲೆ ಹೆಚ್ಚು' ಅನ್ನುವ ಹಾಗಿದೆ ಅಂತ ಅನಿಸಬಹುದು. ಆದರೆ ನಾನು ಈ ಕವಿತೆಗೆ ನ್ಯಾಯ ಮಾಡಬೇಕೆಂದರೆ ಇದನ್ನು ಇಲ್ಲಿ ಹೇಳಲೇ ಬೇಕು.

ಇದರ ಮೊದಲ ಎರಡು ಸಾಲುಗಳು, ಖೆಮೊಥೆರಪಿಗೆ ಒಳಗಾದ ವ್ಯಕ್ತಿಯು ಆ ಕಿರಣಗಳನ್ನೇ ದೇವರೆಂದು ಭಾವಿಸಿ ಆಡಿದ ಮಾತುಗಳಂತೆ ತೋರಿಬರುತ್ತವೆ.

ಕಣ್ಗುಟುಕು: ಕಣಗಳ ಗುಟುಕು

ಇರಲಿ ಕೊಂಚ ಕರುಣಾ: ಖೆಮೊಥೆರಪಿ ಒಂದು ನೋವಾಗುವಂತಹ ಕ್ರಿಯೆ. ಹೇ ಕಿರಣವೆ ನನ್ನ ಮೇಲೆ ಕೊಂಚ ಕರುಣೆ ಇಟ್ಟು ನನಗೇ ಕಡಿಮೆ ನೋವು ಮಾಡು ಎನ್ನುವ ಅರ್ಥ.

ತಮವ ಹಿಂಗೋ ಕಿರಣ: ಕೆಟ್ಟ ಕಣಗಳನ್ನು ನಾಶ ಪಡಿಸುವ ಕಿರಣ

ನಂತರದ ಎರಡು ಸಾಲುಗಳು, ಕ್ಷ-ಕಿರಣಗಳ ವರ್ತನೆಯನ್ನು ಸೂಚಿಸುವ ಹಾಗೆ ಅನಿಸುತ್ತದೆ.

ಬಾನ್ಗಡಲ ಒಡಲ ಬಸಿರಿಂದ : ಕ್ಷ ಕಿರಣಗಳು ಒಂದು ನಿರ್ವಾತ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ ಹುಟ್ಟುತ್ತವೆ. ಅದು ನಮ್ಮನ್ನು ಹೊಕ್ಕಿದಾಗ ಆ ಕಿರಣಗಳನ್ನು ಹೀರಿದಾ ಅಂಶವೆಲ್ಲ ಬಿಳಿ ಹಾಗು ಹೀರದ್ದು ಎಲ್ಲಾ ಕಪ್ಪಾಗಿರುತ್ತದೆ.

ಕೊನೆಯ ಎರಡು ಸಾಲುಗಳು, ಇನ್ಫ್ರಾರೆಡ್ ಕಿರಣಗಳ ವರ್ತನೆಯನ್ನು ಸೂಚಿಸುತ್ತವೆ ಎನ್ನುವುದು ನನ್ನ ಊಹೆ.

ಐದನೆಯ ಸಾಲಿನಲ್ಲಿ ಅದು ಕತ್ತಲೆಯಲ್ಲಿ ನಿಜ ಬಿಂಬ ತೋರುವಾ ಪರಿ ಹಾಗು

ಆರನೇ ಸಾಲಿನಲ್ಲಿ ಅಂತರಿಕ್ಷದಲ್ಲಿ ವಿಜ್ಞಾನಿಗಳು ಈ ಕಿರಣವನ್ನು ಧೂಳಿನಿಂದ ಮುಚ್ಚಿದ ತಾರೆಗಳನ್ನು ನೋಡಲು ಬಳಸುವ ರೀತಿಯಾ ಬಗ್ಗೆ.

ಈ ಎರಡು ನಿಲುವುಗಳ ಸೂಕ್ತಾಸೂಕ್ತತೆ ಎಷ್ಟು ಸಮಂಜಸವೋ ನನಗೇ ತಿಳಿಯದು. ನಿಮ್ಮ ಅಭಿಪ್ರಾಯ ಹಾಗು ಟೀಕೆಗಳನ್ನು ದಯವಿಟ್ಟು ತಿಳಿಸಿ.

ಇದೇ ಸಂಧರ್ಭದಲ್ಲಿ ಇನ್ನೊಂದು ಮಾತು. ಈ ಕವಿತೆ ಬರೆಯುವಾಗ ಕ್ಷ-ಕಿರಣಗಳಿಗೂ ಹಾಗೂ ಆಧ್ಯಾತ್ಮಕ್ಕೂ ಇರುವ ಹಲವು ಹೋಲಿಕೆಗಳು ಬೆಳಕಿಗೆ ಬಂದವು. ಅದರ ಬಗ್ಗೆ ಇನ್ನು ಸ್ವಲ್ಪ ದಿನಗಳಲ್ಲಿ ಪ್ರಕಟಿಸುವೆ. ನಿಮಗೂ ಅದು ಇಷ್ಟವಾಗಬಹುದು ಎನ್ನುವುದು ನನ್ನ ಅನಿಸಿಕೆ.

Sunday, February 19, 2012

ಕಲ್ಗುಡಿಯಾಗ ಕಣ್ತೆರೆಕೊಂಡು


ಕುಂತಾಳ ನೋಡೋ ನಮ್ಮವ್ವ

ಬೆನ್ನು ತುಂಬಾ ಕಣ್ಹೊತ್ಕೊಂಡು

ಬೆನ್ನಿಗೆ ನಿಂತಾಳ ದುರ್ಗವ್ವ



ಬಾಳು ನಿನ್ನ ಕಾಲಡಿಯಲ್ಲಿ

ಬಿದ್ದದ ನೋಡೇ ನಮ್ಮವ್ವ

ಅದಕಿಂತ ಮಾನ ಬೇರೆಯಾವ

ಜಾಗದಾಗೇ ದುರ್ಗವ್ವ



ತಾಯ್ಮನಿ ಬಿಟ್ಟು ಹೊರಟೇನಿಂದು

ಯಾವ್ಮನಿಗೆಂದು ತಿಳೀಡವ್ವ

ಅಳಾಕ ಎರಡೇ ಕಣ್ಣು ನನಗೆ

ನೂರು ನಿನಗೆ ಕಣ್ಣವ್ವ



ಮಕ್ಕಳ ನೋಡೋ ಆಸೆ ನಿನಗೆ

ನಾಳೆ ಏನಾರ್ ಬಂದ್ರವ್ವ.....

ಮನಸಿನ ಬಾಗಿಲ ತೆರೆಕೊಂಡ್ ನಾನು

ಕೂತಿರ್ತೇನೆ ಬಾರವ್ವ.....



ನಿನ್ ಮನಿ ಬಿಟ್ಟು ಹೋಗ್ತೀನೆಂದು

ಮುನಿಸೀಕೊಳಬೇಡವ್ವ

ಅಂತ ಅಂದ್ರ...ಜಗವೇ ನನ್ನ ಹೊಟ್ಟಿ ಒಳಗಾ

ಐತೆ ಮಗನಾ ಅಂದ್ಯವ್ವ....?

ಗರಿ ಗೆದರಿ ನಿಂತ ಗುರುವೆಂಬ ಭಾವ


ಹ್ರುದ್ರಂಗದಲ್ಲಿ ಕುಣಿದು

ಅಂತರಾತ್ಮ ನೂಪುರವು ಕಟ್ಟಿ ಹಾರಿ

ಕುಣಿದು ಕುಣಿದು



ಒಳಗುಡಿಯ ಘಂಟೆಗಳ ಘಂಟ ನಾದ

ಒಳಗಿವಿಯ ಮೇಲೆ ಬಡಿದು

ಬಾಳ ತಾಳ ಆ ಶ್ರುತಿಯ ಹಿಡಿದು

ಭಾವ ಗೀತೆಯಾಗಿ ಹರಿದು



ಅರೆ ಅರಿತ ಅರಿವಿನಾ ಅರಿವಿಗಿಂದು

ಗುರು ದೀಪ ಹಿಡಿದು ಬಂದ

ಆ ಬೆಳಕ ಬಳಕಿನಲಿ ಬೆಳಗಿ ಬಂದ

ನಾ.... ಶ್ರೀ ಅರವಿಂದನೆಂದ