Monday, October 8, 2012

दूर जाना चाहता हूँ आज

दूर जाना चाहता हूँ आज, कि यहाँ कुछ घुटन सी है
कहते है जन्नत है ये, पर इज्ज़त बगैर कुछ जनाज़े सी है


किसी और से क्यों मांगेंगे हम, कि कुछ खुद्दारी सी है
मांगेंगे सिर्फ खुदा से, कि ये हमारी सरगेरानी सी है


मुसाफ़िर है तो फिर, चलना हमारी मजबूरी सी है
झुक के मांग नहीं सकते, अब क्या ये हमारी कमज़ोरी सी है ?

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