Sunday, October 14, 2012

ठगने वाले अक्सर

ठगने वाले अक्सर, मेरे अपनों में क्यों निकले

ग़मगुस्सार सब आज हसने वालों में क्यों निकले


दुनिया बनी है ऐसी, कि यहाँ गुस्ताख़ नहीं सोने वाले

गुल-ए-शब् की खुशबू, अनजान ही क्यों निकले


दबा देंगे हमें , ये दुनिया में उड़ने को बिकने वाले

ये हीरा अक्सर, खानों की गहराई से ही क्यों निकले


बड़ी मशक्क़त हुई , पर हम न थे बदलने वाले

लो तेरी बेपाक दुनिया से हम फिर भी नादान ही निकले

लगता था कि हमने बहुत देखी है दुनिया

जब कफ़न का पर्दा पहना तो कुछ और ही देखा


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तेरे साथ, ता उम्र रहने की आस भी न थी

ऐसे छीन लेगा तुझे, खुदा से ये उम्मीद भी न थी


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किये थे बहुत गुनाह जब हमने

तो हमारा कफ़न बेदाग़ क्यों है?


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परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी

परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी


इतना रोये कि नींद भी बड़ी गहरी आई


लिपटना चाहा तो बिस्तर में तुम न थे

जो ढूँढा तो समझा, अब हम, हम न थे


अब ये समा है, तुम ख्वाब में भी आते नहीं

अब लगता है की हम, जिंदा है ही नहीं


तुम आओगे, इसकी हमें उम्मीद भी नहीं

भुलाना तुमको, हमारे बस में भी तो नहीं


परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी

इतना रोये कि नींद भी बड़ी गहरी आई

एक और रात गुज़ार लेने दो मुझे

ए दोस्त,इतनी जल्दी क्यों संभालते हो मुझे


ग़म को थोडा और महसूस कर लेने दो मुझे



ग़म में डूबा हूँ, पर मेरी फ़िक्र तुम न करना

थोड़ी देर और शराब पी लेने दो मुझे


साथ छोड़ा नहीं जिसने, वो तो ये ग़म ही है

थोड़ी देर और इससे गुफ्तगू कर लेने दो मुझे


इसे थोडा और नजदीक से जान लेने दो मुझे

ग़म के साथ एक और रात गुज़ार लेने दो मुझे

मुझे चलना होगा

काफी लम्बा सफ़र है, पर मुझे चलना होगा


राह जो बनी नहीं, वही से गुज़रना होगा


पत्थर भी है, कांटे भी बिछे है राह पर यहाँ

ज़िन्दा हूँ आज, तो फिर कुछ दूर और चलना होगा


चलते है सब वहाँ, खेत किसीने बनाया है जहां

कोई और घना जंगल है जिससे मुझे निकलना होगा



राह की खातिर, मुझे कुछ दूर और चलना होगा

जहां कोई नहीं चला, उस राह पर मुझे चलना होगा

क्या दुनिया बनायीं है तूने रे खुदा

क्या दुनिया बनायीं है तूने रे खुदा


अब सच्चा कोई शायद यहाँ नहीं रहता

आलम ऐसा है यहाँ कि

अब तो दुश्मन भी दुश्मनी का इज़हार नहीं करता

लो और एक शब् कटती है, उनके इंतज़ार में

लो और एक शब् कटती है, उनके इंतज़ार में


विसाल की आस में, या फिर ऐतबार में


कोने में शम्मा वो जलती ही रही,नूर के इंतज़ार में

दिल भी तो अपना जलता ही रहा उनके प्यार में



नींद में सिरहाने बैठता है कोई, नहीं वो बेज़ार में

रूह तो हमारी खो चुकी है अब इस गुबार में



आता है अक्सर जो सरोश नूर-ए-ग़ैब में

सुलाता है वो फिर रूह को, किसी फिरदौस में



विसाल: मुलाक़ात

ऐतबार: भरोसा

सिरहाने: सर के पास

गुबार: cloud

सरोश: फ़रिश्ता

नूर-ए-ग़ैब : Mysterious light

फिरदौस: जन्नत

खुदा नहीं मिला तो यहाँ रोता कौन है

खुदा नहीं मिला तो यहाँ रोता कौन है


वैसे उसके इंतज़ार में यहाँ जीता कौन है


कल तक हम भी सोचते थे की वो आएगा कभी

कल आएगा भी तो उसके लिए यहाँ रुकता कौन है


खुदा तो आखिर खुदा है, कोई आशना नहीं

ऐतबार उसपे करके चैन से सोता कौन है


जीते थे हम भी कभी उसके नक्श-ओ-कदम पर

आज खुदा को खो कर यहाँ कुछ खोता कौन है


बहुत सताया है प्यार में उसने हमको

अब उससे उम्मीद मोहोब्बत की करता कौन है



वो दिन भी थे, हम उनसे मांगते थे कुछ

आज खुदा से विसाल की दुआ करता कौन है




आशना: दोस्त


ऐतबार: भरोसा


विसाल: मुलाक़ात

Monday, October 8, 2012

सुनता नहीं कोई

सुनता नहीं कोई, फिर बोलने की बेचैनी क्यों है
पढ़ता नहीं कोई, फिर लिखने की बेक़रारी क्यों है

अंधे है सब, फिर शब् से इन्हें शिकायत क्यों है
इंसा ही नहीं यहाँ, फिर इंसानियत की वक़ालत क्यों है

ग़श में है सब, फिर ग़मगुस्सार का इंतेज़ार क्यों है
ग़ैरत पाले है सब, फिर प्यार का ऐतबार क्यों है

मुखौटा पहने है सब, फिर आईने की ज़रुरत क्यों है
मरते है सब, फिर जीने की चाह, ता क़यामत क्यों है





"ಅವ್ರ ಇನ್ಮ್ಯಕ್ ಇರ್ತಾರ್ ನಮ್ ಮನ್ಯಾಗೆ"

ಸಿದ್ದನ್ ನಾನು ಇಲ್ಗಂಟ್ ನೋಡಿದ್,ಅವ್ನ್ ಅಂಗಡೀಲೇನೇ
ಅವ್ನ್ ಮನೆ ಎಲ್ಲೈತೋ, ಅಲ್ ಯಾರವ್ರೋ ದೇವ್ರ ಆಣೆಗೂ ಕಾಣೆ


ನಂಗ್ ಬೇಕಾದವ್ರು ಇದ್ರು ಒಬ್ರು,ಸಿದ್ದ್ನ್ ಅಂಗಡೀಗ್ ಬರ್ತಿದ್ರು
ನಂದು ಅವರ್ದು ಬಲೇ ದೋಸ್ತಿ, ನಂಗ್ ಗುರುಗಳ್ ಅವ್ರು


ಇದ್ಕಿದ್ದಂಗೆ ಬೆಳಿಗ್ಗ್ನೆ ಎದ್ದು, ಸಿದ್ದನ್ ತಾಕ್ ಹೋಗ್ತೀನಂದ್ರು
ಕುಡಿಯಕ್ ಹೋಗ್ತಾರೇನೋ ಅಂತ ತಿಲ್ಕೊಂಡಿದ್ರು ಎಲ್ರು


ಕಾದು ಕಾದು ಸಿದ್ದನ್ ಅಂಗಡೀಗ್ ಹೋಗಿ ಇಚಾರ್ಸಿದ್ರೆ.....
ಗಲ್ಲ್ದಾಗ್ ಕುಂತಿದ್ ಸಿದ್ದ ಎಳ್ದಾ, "ಅವ್ರ ಇನ್ಮ್ಯಕ್ ಇರ್ತಾರ್ ನಮ್ ಮನ್ಯಾಗೆ"

दूर जाना चाहता हूँ आज

दूर जाना चाहता हूँ आज, कि यहाँ कुछ घुटन सी है
कहते है जन्नत है ये, पर इज्ज़त बगैर कुछ जनाज़े सी है


किसी और से क्यों मांगेंगे हम, कि कुछ खुद्दारी सी है
मांगेंगे सिर्फ खुदा से, कि ये हमारी सरगेरानी सी है


मुसाफ़िर है तो फिर, चलना हमारी मजबूरी सी है
झुक के मांग नहीं सकते, अब क्या ये हमारी कमज़ोरी सी है ?

बोलिए आज क्या सुनाये

हमें सुनने की ज़िद बहुत करतें है आप, बोलिए आज क्या सुनाये
हमारे इश्क की दास्ताँ, ज़बानी या रूहानी सुनाये?

इज़हार-ए-इश्क

इतनी गहरी उतरती है नज़र तेरी

कुछ छुपाने का जी नहीं करता

आज तुम हमारी आँखों में देख लो

इज़हार-ए-इश्क अलफ़ाज़ से नहीं होता