Sunday, October 14, 2012

परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी

परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी


इतना रोये कि नींद भी बड़ी गहरी आई


लिपटना चाहा तो बिस्तर में तुम न थे

जो ढूँढा तो समझा, अब हम, हम न थे


अब ये समा है, तुम ख्वाब में भी आते नहीं

अब लगता है की हम, जिंदा है ही नहीं


तुम आओगे, इसकी हमें उम्मीद भी नहीं

भुलाना तुमको, हमारे बस में भी तो नहीं


परसों रात, तुम्हारी याद बहुत आयी

इतना रोये कि नींद भी बड़ी गहरी आई

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