Monday, September 10, 2012

मुकुट उतरा है माँ का अब तक

2. कश्मीर की वेदना से जन्मा एक गीत






मुकुट उतरा है माँ का अब तक

कल शीश भी काटा जाएगा

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



एक बार कट चुकी है माता

क्या फिर से कटता देखेगा ?

माँ को काटने क्या फिर से कोई

नयी तलवार उठाएगा?

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



आने वाली संतति पूछेंगी

माता बहनों की आँखें पूछेंगी

तू क्या जवाब दे पायेगा

यमराज के आँगन में भी तुमसे

यही प्रश्न पुछा जाएगा

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



"हम निष्क्रिय हैं,हम निष्क्रिय हैं"

क्या यह राष्ट्रगीत गवाया जाएगा?

त्राहि त्राहि की लोरी सुनकर

नित बच्चा तेरा सोयेगा

तब भी क्या ए निष्क्रिय पुत्र

तू यु ही देखता रह जाएगा?



हमको फिर से जगना होगा

राम-कृष्ण को जनना होगा

सिंहासन को ठोकर दे कर

कानन में संहार को रचना होगा

पाञ्चजन्य फिर बजना होगा

गीता को लोरी बनना होगा

"वन्दे मातरम,वन्दे मातरम"

कोटि कंठ को गाना होगा

हर बेटे को चन्द्रगुप्त औ

पिता को चणक भी बनना होगा

हर माँ को जीजाबाई औ

बेटी को लक्ष्मीबाई अब बनना होगा



शोषित शोणित आज उबलता

अपमानित अस्मिता है आग उगलता

दग्द कंठ अब है हून्कारता

हिमगिरी से भी है रूद्र पुकारता

चलने वाले चलते जायेंगे

रणचंडी के हार में अपने

शीश फिरोकर अमर हो लेंगे

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