Monday, September 10, 2012

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त


इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता

साथ बैठ वो गर्म हाथ तेरा

मै कुछ देर और पकड़ता



दो बातें साथ बैठ तू और करता

मै सर अपना तेरे कन्धों पे

थोड़ी देर और रखता

दो घडी मेरे साथ तू और रुकता

शायद मै एक और बार तुझे हंसा देता

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता



दो कदम मेरे साथ तू और चलता

तेरा हाथ थामे मै दुनिया को

थोडा और समझता

तेरे बचपन की एक कहानी तू और कहता

शायद मै ज़िन्दगी को थोडा और समझता

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता



दो घडी खुदा से उस दिन और अड़ता

जैसे भिड़ता था रोज़, उस दिन भी

थोडा और भिड़ता

जाना तो सबको है मेरे दोस्त

तू दो दिन और रुकता

इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त

कुछ देर तो और रुकता