इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त
कुछ देर तो और रुकता
साथ बैठ वो गर्म हाथ तेरा
मै कुछ देर और पकड़ता
दो बातें साथ बैठ तू और करता
मै सर अपना तेरे कन्धों पे
थोड़ी देर और रखता
दो घडी मेरे साथ तू और रुकता
शायद मै एक और बार तुझे हंसा देता
इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त
कुछ देर तो और रुकता
दो कदम मेरे साथ तू और चलता
तेरा हाथ थामे मै दुनिया को
थोडा और समझता
तेरे बचपन की एक कहानी तू और कहता
शायद मै ज़िन्दगी को थोडा और समझता
इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त
कुछ देर तो और रुकता
दो घडी खुदा से उस दिन और अड़ता
जैसे भिड़ता था रोज़, उस दिन भी
थोडा और भिड़ता
जाना तो सबको है मेरे दोस्त
तू दो दिन और रुकता
इतनी जल्दी भी क्या थी मेरे दोस्त
कुछ देर तो और रुकता
1 comment:
Super sir
Post a Comment