आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
छीन ले मुझसे मेरी हँसी जो तेरे बस में हो
फूल देना उन्हें जो सहमकर तुझसे मांगते हो
बिछा देना कांटे सारे मेरे पग पर जो तेरे बस में हो
रौंद रौंद काँटों को, जो पाँव मेरे छिलते हो
गिला नहीं, जो रक्त के छाप पग पर छपते हो
रहेम न खा मुझपर ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
सेज चाहे अंगारों का ही जो मेरा सजता हो
अपमानों की लोरी हम रोज़ रात ही जो सुनते हो
सुबह हँसने से, रोक ले रे ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
बैर नहीं उनसे, तुझसे फूलों का सेज जो मांगते हो
चूक कर भी वह फूल जो मेरे पग पर चाहे मिलते हो
झुका ले मुझे, फूल उठाने की खातिर, जो तेरे बस में हो
आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
अमृत का प्यासा, चाहे तुझसे, अमृत घट ही मांगता हो
खुश हूँ, प्यास जो मेरी, आँसूं से ही जो मिटती हो
अमृत घट को अश्रु-स्वेद से, भरने से रोकलो जो तेरे बस में हो
आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
लोग यहाँ के, अमरता का, वर जो तुझसे मांगते हो
गिरने से औ मिटने से, शायद जो वो डरते हो
जाने से पहले ,एक बार फिर लड़ने से रोकले जो तेरे बस में हो
आज़्माले मुझे ए ज़िन्दगी जो तेरे बस में हो
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