बहुत लाई हँसी लब पर
फिर भी दिल से ग़म निकले
कि वो याद आये बहुत अब, पर
वो मेरे दिल से कब निकले
वफ़ा तो बेइन्तेहा की जब, पर
हम इश्क से बे-आबरू क्यों निकले
सुबह बहुतों के गले मिले जब, पर
रात को फिर तनहा क्यों निकले
खूब घूमे गली-बाज़ार जब, पर
प्यार लिए बगैर क्यों निकले
खूब कमाया जो पैसा जब, पर
कफ़न में जेब सिलाए बगैर क्यों निकले
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