ठगने वाले अक्सर, मेरे अपनों में क्यों निकले
ग़मगुस्सार सब आज हसने वालों में क्यों निकले
दुनिया बनी है ऐसी, कि यहाँ गुस्ताख़ नहीं सोने वाले
गुल-ए-शब् की खुशबू, अनजान ही क्यों निकले
दबा देंगे हमें , ये दुनिया में उड़ने को बिकने वाले
ये हीरा अक्सर, खानों की गहराई से ही क्यों निकले
बड़ी मशक्क़त हुई , पर हम न थे बदलने वाले
लो तेरी बेपाक दुनिया से हम फिर भी नादान ही निकले
ग़मगुस्सार सब आज हसने वालों में क्यों निकले
दुनिया बनी है ऐसी, कि यहाँ गुस्ताख़ नहीं सोने वाले
गुल-ए-शब् की खुशबू, अनजान ही क्यों निकले
दबा देंगे हमें , ये दुनिया में उड़ने को बिकने वाले
ये हीरा अक्सर, खानों की गहराई से ही क्यों निकले
बड़ी मशक्क़त हुई , पर हम न थे बदलने वाले
लो तेरी बेपाक दुनिया से हम फिर भी नादान ही निकले